शनिवार, 10 मार्च 2012

रिश्ता जन्मों का

रिश्ता जन्मों का

क्यों लगता है ये रिश्ता जन्मों का है ,
हम तो यूँ ही भटक रहे थे इस जहाँ में ।
लोग मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं ,
फिर भी पूरी होती नहीं तलाश उस साथी की ।
क्यों लगता है ये रिश्ता जन्मों का है ,

हम क्यों अपनी चाहत तो ढूंढ़ते फिरते है ,
क्यों अपने प्यार को बांटते फिरते है ।
क्यों ऐसा लगता है की ख़ुशी येहीं कहीं है ,
क्यों इंतजार मुश्किल होता है
पाने को उस जीवन साथी की,
जिसे देख ऐसा लगे जैसे रिश्ता जन्मो का है ।

ख्वाहिशें पूरी होती नहीं सपने अधूरे रह जाते है ,
मिलन पूरी होती नहीं साथ छुट जाते है ।
सब कुछ लुटा कर भी कुछ हासिल नहीं होता ,
कसक रह जाती है मौत हासिल नहीं होता ।
कहाँ है वो जिसका साथ जन्मों का है ,
क्यों लगता है तेरा - मेरा ये रिश्ता जन्मों का है ।


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