बुधवार, 1 दिसंबर 2010

दूर कहीं से एक आवाज आती है

दूर कहीं से एक आवाज आती है ,
दूर कहीं से एक आवाज आती है
दिल में एक कसक छोड़ जाती है |
नहीं भुला पाता उस मंजर को ,
जब छेड़ा था तुमने इस दिल के तार को |

क्यों में मजबूर हो चला था ,
खुद से ही दूर हो चला था |
चाहत थी बहुत जिसे छुपाये रखा था ,
तुम्हारी मदहोश नैनो से बचाए रखा था |


बहुत रोका था इसे पर रोक न सका ,
चाह कर भी तुझसे दूर  रख न सका |
बांध गया तुम्हारे प्यार के मोहपाश में ,
तन्हा रह न सका अपने एहसास में |


जीने नहीं देती है ये एहसासे ,
न मरने देती है ये एहसासे |
बस एक उफ़ सी निकलती है इस दिल से ,
और चुभ सी जाती है हजारों कांटे |


तुझे भूलना तो चाहा पर भुला न सका ,
तुझे पाना चाहा पर पा न सका |
तुझसे दूर जाना चाहा पर जा न सका ,
इस ज़िन्दगी से टूटना चाहा पर टूट न सका |


तुझे देखे बिना दिन नहीं गुजरता था ,
तुझे सोचे बिना पल नहीं संभालता था |
राते कटती थी मेरी तन्हायियो में ,
चाँद चुप जाता था उन रुस्वायिओं में |


दूर कहीं से एक आवाज आती है ,
दिल में एक कसक छोड़ जाती है |

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

दिल के आवाज............Heart Beat

कहीं दूर किसी ने आवाज दी है ,
सूरज की तपती गर्मी में एक एहसास दी है |
कहीं दूर किसी का दिल धड़कता तो होगा,
जब इस दिल ने उसे एक आवाज दी है |

यूँ ही सांसे थम सी नहीं जाती ,
यूँ ही धड़कने तेज सी नहीं होती ,
यूँ ही कोई ख्यालों में खो नहीं जाता |
यूँ ही लोग उसे दीवाना न समझ लेते ,
जब उस दीवाने को किसी ने आवाज दी है |

कितना अजीब सा लगता है, जब मन बेचैन सा होता है ,
जब इस दिल की डोर कोई और खींचता है |
कितना प्यारा सा लगता है, दुनिया सिमट सी जाती है ,
जब दूर बैठा कोई याद करता है |
कितना दर्द होता है, आँखें भर सी आती है,
जब दूर किसी के दिल में एक आह उभर आती है |

सिसकती तपस जब दिल को छू जाती है,
मन कि तड़प जब किसी कि याद दिला जाती है |
इन आँखों के मोती जब किसी के दर्द बयाँ करती है,
जब हिचकियाँ भी दिल के दर्द को बढ़ा जाती है ,
दूर बैठा कोई जब याद करता है |

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

विरानियाँ .............. A Solitude.

उन दिनों जब कि तुम थे यहाँ ,
ज़िन्दगी जागी - जागी सी थी |
सारे मौसम बड़े मेहबान दोस्त थे ,
रास्ते दावतनामे थे जो मंजिलों के |
लिखे थे जमीं पर हमारे लिए कि ,
ये बाहें पसारे  खड़े थे ,
हमें छांव  की शाल पहनाने के वास्ते |
शाम को सब सितारे ,
बहुत मुस्कुराते थे जब देखते थे हमें |
आती - जाती हवाएं, कोई गीत खुशबू का गाती हुई ,
चीरती थी, गुजर जाती थी |
आसमान पिघले नीलम के गहरा तालाब था ,
जिसमे हर रात एक चाँद का फूल खिलता था और
पिघले नीलम की लहरों में बहता हुआ ,
वो हमारे  दिलों के किनारों को छू लेता था |
उन दिनों, जब तुम थे यहाँ |


अस्को में जैसे घुल गए सब मुस्कुरा के रंग ,
रास्ते में थक के सो गए मालूम सी उमंग |
दिल है कि फिर भी ख्वाब सजाने को शौक है ,
पत्थर में भी फूल उगाने  का शौक है |
बरसों से तो यूँ एक अमावास की रात है,
अब इसको हौसला कहूँ कि जिद कि बात है \
दिल कहता है कि अँधेरे में भी रौशनी तो है ,
माना कि रात हो गयी उम्मीद के साए ,
पर इस रात में भी याद कहीं दबी तो है |

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

मैं और मेरे दोस्त....... ek atut bandhan

मैं और मेरे दोस्त, है एक अटूट बंधन सा ,
संग चलते, गिरते - सँभालते दूर निकल आये हैं |
वक़त को मीलों पीछे छोड़ चले आये हैं ,
दुनिया को पास से देखने  और समझने को ,
अपने - अपने बचपन पीछे छोड़ आये हैं |
मैं और मेरे दोस्त .................................


जीवन के संघर्ष में जीत हमे हासिल हुई है ,
कोई इंस्पेक्टर तो कोई इंजिनियर बन बैठे हैं |
कोई ट्रेन कि रक्षा तो कोई वायु रक्षा का बोझ
संभाले तैनात बैठे है ,
कुछ देश की तिजोरी में धन भर रहा है , तो
कुछ लोगों की जेब खाली कर रहा है |
कोई डाकियागिरी कर रहा है, तो कोई उठाइगिरी ,
ढेरों भिन्नताओं के बाओजूद हम संग-संग चल रहे हैं |
मैं और मेरे दोस्त .................................


जब हम साथ होते, तो
कभी पिकनिक का माहोल रहता तो
कभी सैर सपाटे का मौज रहता |
कभी मस्तियाँ तो कभी अठखेलियाँ संग होता ,
कभी नादानियाँ तो कभी बद्मासियाँ का आलम होता |
होली हो या दिवाली , शादी हो या बाराती,
बिताये बचपन वापस लौटा लाते |
कुछ देर के लिए ही सही पर संग -संग हम जी लेते |
मैं और मेरे दोस्त .................................


वह दौर भी आया जब प्यार कि हवा चली ,
जहाँ किसी को प्यार मिला तो किसी को हार मिला |
कहीं किसी को फूल मिला तो किसी तो कांटे मिले ,
कोई ख़ुशी में दीवाना हुआ तो कोई कोई गम में अनजाना हुआ |
बस एक दोस्त ही था जिसका सहारा न कभी अधुरा हुआ ,
जिसने अपने आप को समर्पित कर इसे पूरा किया |
मैं और मेरे दोस्त .................................

मैं और मेरे दोस्त ............. A True Friend

 जब हम मिले थे, अपने पलकों में बैठाये थे,
कभी खेल- कूद तो कभी धूम - धड़का  करते थे |
दिन स्कूल में कटता था, शाम सड़क पे बिताते थे,
पर कुछ वक़त किताबों के साथ भी गुजरते थे |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


सुबह सवेरे सैर को निकलते थे,
कभी चाय तो कभी समोसे को झपटते थे |
साइकिलों की भीड़ में स्कूल को भागते थे ,
दिन भर किताबों के संग सिर  खपाते थे |
खेलते - थकते घर को लौटते थे |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


आखिर स्कूल का दौर ख़तम हो चला था ,
पर आगे कॉलेज का जूनून तो अभी बाकी था |
मध्यम रौशनी को छोड़ उजाले को अपनाना था,
बचपन को भूल  जवानी को जानना  था |
कठिन मेहनत के फल का इंतजार हो चला था |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


वो दिन आ गया और हमें अलग कर दिए ,
न संग साइकिलों की भीड़ थी, न थे संग नज़ारे |
पर थी अपनी दोस्ती इतनी गहरा कि ,
शाम ढलते सूरज कि लौ में खिलती थी |
एक बार फिर दौर चलता था चाय और समोसे का |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


$ - मेरे सभी दोस्तों को समर्पित - संजय कुमार |