शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

Why this world facing problem with corona virus disease 2019

🐡 *महायुद्ध*   🐲

आज मैं इतना शक्तिशाली बन गया हूं कि संसार के सबसे महान शक्तिशाली देशों को मैंने गिड़गिड़ाने पर मजबूर कर दिया। तुम मानव खुद को प्रकृति में सबसे उत्तम,सबसे बुद्धिमान समझने की भूल करते हो, यह भूल जाते हो कि तुम जिस सर्वशक्ति परमात्मा का एक छोटा सा अंश हो और उसी परमात्मा का मैं भी एक अति सुक्ष्म, तुम्हारी तुलना में नगण्य अंश हुँ। पर मेरे अंदर भी वही ऊर्जा है, वही शक्ति हैं । तुम अपने महान शक्ति से विनाश फैला सकते हो परंतु मुझे समझने में भूल करते हो।मैं भी उतना ही विनाश फैलाने में सक्षम हूं । असल में हम दोनों तो एक ही उर्जा अर्थात परमात्मा के भाग हैं।
     मुझे तुम लोग *कोरोना* कहते हो। वैसे तो मुझे कोई भी नाम से पुकारो मेरा अस्तित्व तो नहीं बदलता । मैं वही उर्जा हूं ।जिस तरह एक छोटी सी आग की चिंगारी अमेजॉन की विशालकाय जंगल को जलाकर खाक कर सकती है ,आज मैं भी पूरे विश्व को विनाश करने में सक्षम हुँ। यह बात तुम मानव को शायद समझ आ गया होगा । आज मैंने पूरे विश्व की विकास को रोक दिया । तुम मानव अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का शोषण करते गए , तरक्की की राह में यह भूल गए कि संसार में और भी अन्य प्रजाति , पदार्थ , संसाधन है जिसे सुख समृद्धि से जीने का अधिकार है। जब जब शोषण बढ़ता है तब तक आंदोलन उठता है ,और तुम मानव ने इस प्रकृति का जिस तरह से शोषण करना शुरू किया है न जाने कितनों असंख्य आत्माओं को दुख पहुंचाया, तुम क्या सोचते हो अन्य प्रजाति, पदार्थों में जीवन नहीं है, वह बोलते नहीं इसका मतलब यह नहीं कि तुम मनमानी करते रहो । आज इस महायुद्ध का जिम्मेवार तुम मानव खुद हो।
     यह महायुद्ध तो होना ही था ,जब जब मानव ने सृष्टि का दोहन करना चाहा मेरे जैसे किसी न किसी को सृष्टि का बचाव एवं प्रजातियों का संतुलन के लिए ताकतवर बनना  पड़ा । मैं भी 1 दिन में ताकतवर नहीं बना, मुझे भी कई वर्ष लग गए खुद को तुम से युद्ध करने के लिए तैयार करने में । मुझे तुमने कई नाम से पुकारा कभी *229E* कभी *SARS-COV* तो कभी *MERS-COV* और इस बार *SARS-COV2 (कोविड-19)* जिसे मानव जाति का हर एक बच्चा जानता है ।
   मानता तो हर कोई है परंतु जानता नहीं । सदियों से तुम सुनते आ रहे हो हर कण में भगवान है । पत्थर में, पेड़ पौधे में,जीव जंतु में परंतु तुमने कभी जानने का प्रयास ही नहीं किया। तुम मानव के अंदर आत्मा है। वह आत्मा जो परमात्मा का स्वरुप है। परमात्मा एक है और वही परमात्मा का स्वरूप अन्य जीव-जंतु, पेड़-पौधे, जल, वायु, धरती,आकाश में है।यदि तुम जानने का प्रयास करते इस सभी आत्माएं यानी परम ऊर्जा का रूपांतरण ऊर्जा इस सृष्टि में विभिन्न रूपों में उपलब्ध है तो क्या तुम दूसरों को नुकसान करते , दूसरों के आत्माओं का शोषण करते ,उनका दोहन करते । इस सृष्टि में तुम मानव से पहले अन्य आत्माओं ने अपना कदम रखा ।जल वायु धरती जिसके हजारों वर्षों से तुम्हारे पूर्वजों ने पूजा अर्चना की । पूजा करने का मतलब मानना नहीं है। वह जानते थे कि जल वायु एवं धरती के बिना मानव शरीर का अस्तित्व ही नहीं है । यह शरीर मात्र एक निर्जीव पदार्थ है तुम्हारे पूर्वज देवता की भांति इसका पूजन और सम्मान करते आ रहे थे फिर धरती ने तुम्हारे लिए पेड़ पौधे उगाए तुम्हें भोजन दिया उसमें भी जल और वायु ने अपना योगदान दिया और तुम आज सबसे महान बन रहे हो परंतु महान हो नहीं ।

   तुम मानव ने अपने कृत्य कार्यों से जल को दूषित किया ।वायु को प्रदूषित किया । धरती में ना जाने कितने प्रकार के विष डालकर प्राकृतिक संपदा को नुकसान पहुंचाया । जिससे प्रकृति असहाय होती चली गई । नदियों , पहाड़ों , सागर तक को नहीं बक्सा। जंगल के जंगल को काटते चले गए कभी यह नहीं सोचा कि अन्य पक्षी , छोटे बड़े जानवर कहां रहेंगे। अपना महल बनाने के लिए दूसरों की झोपड़ियां  उखाड़ते रहे । धन कमाने की चाहत में न जाने कितने आकृत कार्य किए । धरती से उत्तम किस्म के फल सब्जी उगाने के नाम में जहर डालकर धरती की आत्मा को दूषित करते रहे।  खुद को चांद पर पहुंचाने के लिए अन्य सुविधाओं की लालसा में वायु को दूषित कर दिया। वायु  में भी जहर घोलते रहे । हर तरफ सिर्फ और सिर्फ शोषण किया है तुम मानव ने।

इतिहास गवाह है जब जब अति शोषण हुआ है तब-तब अन्य किसी को आगे आकर आवाज उठाना पड़ा है । इस बार का *महायुद्ध* जो सिर्फ मानव और मेरे यानी *कोरोना* के बीच है। मैं अकेला हूं पर अकेला ना समझना ।मेरे साथ आयबआत्माएं हैं जिसे तुमने दुख दिया दूषित किया और नष्ट करने का प्रयास किया । मैं नगण्य हूं परंतु मुझ में अपार शक्ति है अन्य आत्माओं का। उसी *रक्तबीज* की तरह जिसका रक्त के बूँद गिरकर कई राक्षस बन जाते थे । मैं जो मानव शरीर में जाकर अपने कई रूपों को बना सकता हूं ।उस रक्तबीज को तो मां शक्ति चंडिका ने खत्म कर दिया था परंतु मुझे तुम कैसे मारोगे। जब तक मेरे लिए हथियार तैयार करोगे तब तक तो मैं कितना विनाश कर दूंगा तुम सोच भी नहीं सकते । *उसके बाद भी यदि तुम अपनी गलतियों से नहीं सीखे तो मैं फिर अपना रूप बदलकर और ज्यादा शक्तिशाली बन कर इसी तरह का तुम सृष्टि के बिनाशकों का विनाश करूंगा।*

*संजय कुमार*
बैंक ऑफ इंडिया
   बुंडू (राँची)
8210841238
🔅🔅🔅🔅🔅🔅

शनिवार, 10 मार्च 2012

रिश्ता जन्मों का

रिश्ता जन्मों का

क्यों लगता है ये रिश्ता जन्मों का है ,
हम तो यूँ ही भटक रहे थे इस जहाँ में ।
लोग मिलते हैं और बिछड़ जाते हैं ,
फिर भी पूरी होती नहीं तलाश उस साथी की ।
क्यों लगता है ये रिश्ता जन्मों का है ,

हम क्यों अपनी चाहत तो ढूंढ़ते फिरते है ,
क्यों अपने प्यार को बांटते फिरते है ।
क्यों ऐसा लगता है की ख़ुशी येहीं कहीं है ,
क्यों इंतजार मुश्किल होता है
पाने को उस जीवन साथी की,
जिसे देख ऐसा लगे जैसे रिश्ता जन्मो का है ।

ख्वाहिशें पूरी होती नहीं सपने अधूरे रह जाते है ,
मिलन पूरी होती नहीं साथ छुट जाते है ।
सब कुछ लुटा कर भी कुछ हासिल नहीं होता ,
कसक रह जाती है मौत हासिल नहीं होता ।
कहाँ है वो जिसका साथ जन्मों का है ,
क्यों लगता है तेरा - मेरा ये रिश्ता जन्मों का है ।


बुधवार, 1 दिसंबर 2010

दूर कहीं से एक आवाज आती है

दूर कहीं से एक आवाज आती है ,
दूर कहीं से एक आवाज आती है
दिल में एक कसक छोड़ जाती है |
नहीं भुला पाता उस मंजर को ,
जब छेड़ा था तुमने इस दिल के तार को |

क्यों में मजबूर हो चला था ,
खुद से ही दूर हो चला था |
चाहत थी बहुत जिसे छुपाये रखा था ,
तुम्हारी मदहोश नैनो से बचाए रखा था |


बहुत रोका था इसे पर रोक न सका ,
चाह कर भी तुझसे दूर  रख न सका |
बांध गया तुम्हारे प्यार के मोहपाश में ,
तन्हा रह न सका अपने एहसास में |


जीने नहीं देती है ये एहसासे ,
न मरने देती है ये एहसासे |
बस एक उफ़ सी निकलती है इस दिल से ,
और चुभ सी जाती है हजारों कांटे |


तुझे भूलना तो चाहा पर भुला न सका ,
तुझे पाना चाहा पर पा न सका |
तुझसे दूर जाना चाहा पर जा न सका ,
इस ज़िन्दगी से टूटना चाहा पर टूट न सका |


तुझे देखे बिना दिन नहीं गुजरता था ,
तुझे सोचे बिना पल नहीं संभालता था |
राते कटती थी मेरी तन्हायियो में ,
चाँद चुप जाता था उन रुस्वायिओं में |


दूर कहीं से एक आवाज आती है ,
दिल में एक कसक छोड़ जाती है |

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

दिल के आवाज............Heart Beat

कहीं दूर किसी ने आवाज दी है ,
सूरज की तपती गर्मी में एक एहसास दी है |
कहीं दूर किसी का दिल धड़कता तो होगा,
जब इस दिल ने उसे एक आवाज दी है |

यूँ ही सांसे थम सी नहीं जाती ,
यूँ ही धड़कने तेज सी नहीं होती ,
यूँ ही कोई ख्यालों में खो नहीं जाता |
यूँ ही लोग उसे दीवाना न समझ लेते ,
जब उस दीवाने को किसी ने आवाज दी है |

कितना अजीब सा लगता है, जब मन बेचैन सा होता है ,
जब इस दिल की डोर कोई और खींचता है |
कितना प्यारा सा लगता है, दुनिया सिमट सी जाती है ,
जब दूर बैठा कोई याद करता है |
कितना दर्द होता है, आँखें भर सी आती है,
जब दूर किसी के दिल में एक आह उभर आती है |

सिसकती तपस जब दिल को छू जाती है,
मन कि तड़प जब किसी कि याद दिला जाती है |
इन आँखों के मोती जब किसी के दर्द बयाँ करती है,
जब हिचकियाँ भी दिल के दर्द को बढ़ा जाती है ,
दूर बैठा कोई जब याद करता है |

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

विरानियाँ .............. A Solitude.

उन दिनों जब कि तुम थे यहाँ ,
ज़िन्दगी जागी - जागी सी थी |
सारे मौसम बड़े मेहबान दोस्त थे ,
रास्ते दावतनामे थे जो मंजिलों के |
लिखे थे जमीं पर हमारे लिए कि ,
ये बाहें पसारे  खड़े थे ,
हमें छांव  की शाल पहनाने के वास्ते |
शाम को सब सितारे ,
बहुत मुस्कुराते थे जब देखते थे हमें |
आती - जाती हवाएं, कोई गीत खुशबू का गाती हुई ,
चीरती थी, गुजर जाती थी |
आसमान पिघले नीलम के गहरा तालाब था ,
जिसमे हर रात एक चाँद का फूल खिलता था और
पिघले नीलम की लहरों में बहता हुआ ,
वो हमारे  दिलों के किनारों को छू लेता था |
उन दिनों, जब तुम थे यहाँ |


अस्को में जैसे घुल गए सब मुस्कुरा के रंग ,
रास्ते में थक के सो गए मालूम सी उमंग |
दिल है कि फिर भी ख्वाब सजाने को शौक है ,
पत्थर में भी फूल उगाने  का शौक है |
बरसों से तो यूँ एक अमावास की रात है,
अब इसको हौसला कहूँ कि जिद कि बात है \
दिल कहता है कि अँधेरे में भी रौशनी तो है ,
माना कि रात हो गयी उम्मीद के साए ,
पर इस रात में भी याद कहीं दबी तो है |

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

मैं और मेरे दोस्त....... ek atut bandhan

मैं और मेरे दोस्त, है एक अटूट बंधन सा ,
संग चलते, गिरते - सँभालते दूर निकल आये हैं |
वक़त को मीलों पीछे छोड़ चले आये हैं ,
दुनिया को पास से देखने  और समझने को ,
अपने - अपने बचपन पीछे छोड़ आये हैं |
मैं और मेरे दोस्त .................................


जीवन के संघर्ष में जीत हमे हासिल हुई है ,
कोई इंस्पेक्टर तो कोई इंजिनियर बन बैठे हैं |
कोई ट्रेन कि रक्षा तो कोई वायु रक्षा का बोझ
संभाले तैनात बैठे है ,
कुछ देश की तिजोरी में धन भर रहा है , तो
कुछ लोगों की जेब खाली कर रहा है |
कोई डाकियागिरी कर रहा है, तो कोई उठाइगिरी ,
ढेरों भिन्नताओं के बाओजूद हम संग-संग चल रहे हैं |
मैं और मेरे दोस्त .................................


जब हम साथ होते, तो
कभी पिकनिक का माहोल रहता तो
कभी सैर सपाटे का मौज रहता |
कभी मस्तियाँ तो कभी अठखेलियाँ संग होता ,
कभी नादानियाँ तो कभी बद्मासियाँ का आलम होता |
होली हो या दिवाली , शादी हो या बाराती,
बिताये बचपन वापस लौटा लाते |
कुछ देर के लिए ही सही पर संग -संग हम जी लेते |
मैं और मेरे दोस्त .................................


वह दौर भी आया जब प्यार कि हवा चली ,
जहाँ किसी को प्यार मिला तो किसी को हार मिला |
कहीं किसी को फूल मिला तो किसी तो कांटे मिले ,
कोई ख़ुशी में दीवाना हुआ तो कोई कोई गम में अनजाना हुआ |
बस एक दोस्त ही था जिसका सहारा न कभी अधुरा हुआ ,
जिसने अपने आप को समर्पित कर इसे पूरा किया |
मैं और मेरे दोस्त .................................

मैं और मेरे दोस्त ............. A True Friend

 जब हम मिले थे, अपने पलकों में बैठाये थे,
कभी खेल- कूद तो कभी धूम - धड़का  करते थे |
दिन स्कूल में कटता था, शाम सड़क पे बिताते थे,
पर कुछ वक़त किताबों के साथ भी गुजरते थे |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


सुबह सवेरे सैर को निकलते थे,
कभी चाय तो कभी समोसे को झपटते थे |
साइकिलों की भीड़ में स्कूल को भागते थे ,
दिन भर किताबों के संग सिर  खपाते थे |
खेलते - थकते घर को लौटते थे |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


आखिर स्कूल का दौर ख़तम हो चला था ,
पर आगे कॉलेज का जूनून तो अभी बाकी था |
मध्यम रौशनी को छोड़ उजाले को अपनाना था,
बचपन को भूल  जवानी को जानना  था |
कठिन मेहनत के फल का इंतजार हो चला था |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


वो दिन आ गया और हमें अलग कर दिए ,
न संग साइकिलों की भीड़ थी, न थे संग नज़ारे |
पर थी अपनी दोस्ती इतनी गहरा कि ,
शाम ढलते सूरज कि लौ में खिलती थी |
एक बार फिर दौर चलता था चाय और समोसे का |
मैं और मेरे दोस्त ....................................... 


$ - मेरे सभी दोस्तों को समर्पित - संजय कुमार |