दिन स्कूल में कटता था, शाम सड़क पे बिताते थे,
पर कुछ वक़त किताबों के साथ भी गुजरते थे |मैं और मेरे दोस्त .......................................
सुबह सवेरे सैर को निकलते थे,
कभी चाय तो कभी समोसे को झपटते थे |
साइकिलों की भीड़ में स्कूल को भागते थे ,
दिन भर किताबों के संग सिर खपाते थे |
खेलते - थकते घर को लौटते थे |
मैं और मेरे दोस्त .......................................
आखिर स्कूल का दौर ख़तम हो चला था ,
पर आगे कॉलेज का जूनून तो अभी बाकी था |
मध्यम रौशनी को छोड़ उजाले को अपनाना था,
बचपन को भूल जवानी को जानना था |
कठिन मेहनत के फल का इंतजार हो चला था |
मैं और मेरे दोस्त .......................................
वो दिन आ गया और हमें अलग कर दिए ,
न संग साइकिलों की भीड़ थी, न थे संग नज़ारे |
पर थी अपनी दोस्ती इतनी गहरा कि ,
शाम ढलते सूरज कि लौ में खिलती थी |
एक बार फिर दौर चलता था चाय और समोसे का |
मैं और मेरे दोस्त .......................................
$ - मेरे सभी दोस्तों को समर्पित - संजय कुमार |
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