शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

विरानियाँ .............. A Solitude.

उन दिनों जब कि तुम थे यहाँ ,
ज़िन्दगी जागी - जागी सी थी |
सारे मौसम बड़े मेहबान दोस्त थे ,
रास्ते दावतनामे थे जो मंजिलों के |
लिखे थे जमीं पर हमारे लिए कि ,
ये बाहें पसारे  खड़े थे ,
हमें छांव  की शाल पहनाने के वास्ते |
शाम को सब सितारे ,
बहुत मुस्कुराते थे जब देखते थे हमें |
आती - जाती हवाएं, कोई गीत खुशबू का गाती हुई ,
चीरती थी, गुजर जाती थी |
आसमान पिघले नीलम के गहरा तालाब था ,
जिसमे हर रात एक चाँद का फूल खिलता था और
पिघले नीलम की लहरों में बहता हुआ ,
वो हमारे  दिलों के किनारों को छू लेता था |
उन दिनों, जब तुम थे यहाँ |


अस्को में जैसे घुल गए सब मुस्कुरा के रंग ,
रास्ते में थक के सो गए मालूम सी उमंग |
दिल है कि फिर भी ख्वाब सजाने को शौक है ,
पत्थर में भी फूल उगाने  का शौक है |
बरसों से तो यूँ एक अमावास की रात है,
अब इसको हौसला कहूँ कि जिद कि बात है \
दिल कहता है कि अँधेरे में भी रौशनी तो है ,
माना कि रात हो गयी उम्मीद के साए ,
पर इस रात में भी याद कहीं दबी तो है |

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