शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

मैं और मेरे दोस्त....... ek atut bandhan

मैं और मेरे दोस्त, है एक अटूट बंधन सा ,
संग चलते, गिरते - सँभालते दूर निकल आये हैं |
वक़त को मीलों पीछे छोड़ चले आये हैं ,
दुनिया को पास से देखने  और समझने को ,
अपने - अपने बचपन पीछे छोड़ आये हैं |
मैं और मेरे दोस्त .................................


जीवन के संघर्ष में जीत हमे हासिल हुई है ,
कोई इंस्पेक्टर तो कोई इंजिनियर बन बैठे हैं |
कोई ट्रेन कि रक्षा तो कोई वायु रक्षा का बोझ
संभाले तैनात बैठे है ,
कुछ देश की तिजोरी में धन भर रहा है , तो
कुछ लोगों की जेब खाली कर रहा है |
कोई डाकियागिरी कर रहा है, तो कोई उठाइगिरी ,
ढेरों भिन्नताओं के बाओजूद हम संग-संग चल रहे हैं |
मैं और मेरे दोस्त .................................


जब हम साथ होते, तो
कभी पिकनिक का माहोल रहता तो
कभी सैर सपाटे का मौज रहता |
कभी मस्तियाँ तो कभी अठखेलियाँ संग होता ,
कभी नादानियाँ तो कभी बद्मासियाँ का आलम होता |
होली हो या दिवाली , शादी हो या बाराती,
बिताये बचपन वापस लौटा लाते |
कुछ देर के लिए ही सही पर संग -संग हम जी लेते |
मैं और मेरे दोस्त .................................


वह दौर भी आया जब प्यार कि हवा चली ,
जहाँ किसी को प्यार मिला तो किसी को हार मिला |
कहीं किसी को फूल मिला तो किसी तो कांटे मिले ,
कोई ख़ुशी में दीवाना हुआ तो कोई कोई गम में अनजाना हुआ |
बस एक दोस्त ही था जिसका सहारा न कभी अधुरा हुआ ,
जिसने अपने आप को समर्पित कर इसे पूरा किया |
मैं और मेरे दोस्त .................................

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